कला - साहित्य

इक गहरा राज़ “ठीक हूँ ना”

कितना औपचारिक सा प्रश्न है
“कैसे हो “
जबकि सब यह जानते हैं कि
प्रतिउत्तर में ” ठीक हूँ ” ही सुनना है।
कभी – कभी लगता है कि –
इस ” ठीक हूं ” शब्द का
मन के प्रयोगशाला में सूक्ष्मदर्शी से,
अवलोकन किया जाना चाहिए,
जैसे बासी ब्रेड के उपर कीटाणु
कभी खाली आँखों से नहीं दिखाई देते
वैसे ही “ठीक हूं” के प्रत्येक अक्षर में
दुख और अवसाद के कितने ही कीटाणु रेंगते मिलेंगे…
जो खाली आँखों से दिखाई नहीं देते,
कभी लगता है कि
इस शब्द को किसी अवार्ड से,
सम्मानित किया जाना चाहिए
क्योंकि यह इकलौता शब्द है
जो सारे डरावने सच को
अपने भीतर छुपाकर
सामने वाले को आश्वत कर देता है,
ये इकलौता शब्द है
जिसने सबके जबान पर घर कर लिया है
लेकिन
इसका मन और वास्तविकता से
कोई लेना देना नहीं है।
अंदर से पूरा बिखरा इंसान भी
सबको “ठीक हूं” ही कहता है….
इसमें जीवन का गहरा राज़ छुपा है…
हिना पुजारा

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