कला - साहित्य
“मैंने माँ का बचपन तो देखा नहीं”

मैनें माँ का बचपन तो देखा नहीं
लेकिन बचपना देखा है
और देखी है उनकी बेपरवाहियां
जो पिता की उपस्थिति में
माँ दिखाया करती थीं
छोटे से घर के अंदर आजाद चिड़िया सी
उन्हें फुदकते देखा है
दिन भर का दुख दर्द
पिता के कंधों पर उड़ेल
खुद को एक मीठी नींद के आगोश में
थपकी देते देखा है
लेकिन,
पिता के जाते ही वो सारी बेपरवाहियां
आई हो जैसे साल भर का हिसाब करने
और ले गई माँ का सारा बचपना
और मीठी नींद किसी संदूक में भर..
और दे गई उदासियां
अब वे माँ की आँखों में
किसी सच्ची सहेली की तरह साथ रहती है..
अब मैंने दिन भर माँ को
उदासियों के साथ बतियाते देखा है..
“हिना पुजारा”
