अन्य गतिविधियाँ

1 अगस्त जयंती पर विशेष

छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संवाहक : स्व.पंडित अमृतलाल दुबे

छत्तीसगढ़ी लोकगीतों के प्रथम संग्रहकर्ता और समग्र रूप से उन पर शोध लिखने वाले लेखक के रूप में पंडित अमृतलाल दुबे जी को सदैव आदर के साथ स्मरण किया जाएगा। तुलसी के “बिरवा जगाय” उनकी अत्यधिक चर्चित कृति है जिसके लिए उन्हें सन 1966 में प्रथम ईसुरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। “तुलसी के बिरवा जगाय” के रचयिता स्वर्गीय पंडित अमृतलाल दुबे बहुमुखी प्रतिभा की धनी थे। आपका जन्म 1 अगस्त 1925 को अपने पितृगृह पुराना सरकंडा(बिलासपुर) में पिता पंडित भैरव प्रसाद दुबे जी के घर हुआ। मानस मर्मज्ञ पिता का पूरा प्रभाव पंडित जी के जीवन पर रहा ।उन्हें अपने पारिवारिक परिवेश से ही धार्मिक व संगीत का वातावरण मिला। मानस के दोहे चौपाइयों, विनय पत्रिका के पदों , मीरा , सूरदास और कबीर के पदों, भजन कीर्तन आदि का गायन करते हुए छोटे उम्र से ही वे हारमोनियम और बांसुरी बजाने लगे थे। घर का वातावरण पूर्ण रूप आडंबरहीन था जिसका प्रभाव आप पर पूरी तरह से पड़ा। आपका जीवन हमेशा सादगी पूर्ण बीता।जीवन संगिनी श्रीमती मोतिम बाई भी छत्तीसगढ़ी संस्कृति में रची बसी महिला होने के कारण घर का समग्र वातावरण पूर्णतया संगीत व साहित्य को समर्पित हो गया था ।आपके पिता श्री भैरव प्रसाद दुबे जी स्वयं एक शिक्षक थे इसलिए आप भी शिक्षा के महत्व को समझते थे। आपने हिंदी में एम ए की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा उरांव जनजाति के कुडुख बोली का गहरा अध्ययन किया था ।साथ ही मुंबई में सामाजिक विज्ञान में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया। आपने 1956 में सागर विश्वविद्यालय से लॉ पूर्व की परीक्षा पास की थी ।परिवार में इतनी शिक्षा प्राप्त करने वाले आप प्रथम व्यक्ति थे । आपने राष्ट्रीय आंदोलन में भी भाग लिया ।25 वर्ष की अवस्था में अपने शासकीय सेवा प्रारंभ की। सबसे पहले आपने म्युनिसिपल स्कूल में शिक्षण कार्य किया। मध्यप्रदेश आदिम जाति कल्याण विभाग के विभिन्न पदों- उपसंचालक, संयुक्त संचालक, परियोजना अधिकारी का उत्तरदायित्व निभाते हुए विभिन्न जिलों में कार्य किया। मध्यप्रदेश अस्पृश्यता निवारण समिति के सचिव के रूप में आपने देश के प्रमुख स्थान का दौरा किया ।वे एक अच्छे वक्ता, चिंतक मानस ज्ञाता ,धार्मिक व साहित्य प्रेमी व संग्रहकर्ता (लोक साहित्य,लोक गीत)थे। उन्हें फोटोग्राफी का भी शौक था। श्री दुबे जी गायत्री परिवार से संबंध रखते थे ।उन्होंने सदैव गुरुदेव जी श्रीराम शर्मा आचार्य के प्रति अपनी श्रद्धा रखी एवं उनसे दीक्षा प्राप्त की थी तथा गायत्री साधना में उन्होंने अपना जीवन अर्पण कर दिया था। श्री दुबे जी एक श्रेष्ठ साहित्यकार थे। आपका जीवन देश, समाज व लोक साहित्य को समर्पित रहा ।आपने अनेक कविताएँ कहानियाँ, लेख ,छत्तीसगढ़ी गीत व मुक्तक आदि का सृजन किया ।साहित्यकार के बारे में आपका विचार था कि साहित्यकार को मात्र समाज दृष्टा ही नहीं बल्कि समाज सृष्टा भी होना चाहिए। आपका पहला ग्रंथ ही छत्तीसगढ़ लोकगीतों की समृद्ध परंपरा का ऐसा शानदार संग्रह सिद्ध हुआ कि हिंदी जगत में उसे आदर्श माना गया। मध्य प्रदेश शासन ने सन 1966 में लोक साहित्य हेतु आपको ईसुरी पुरस्कार प्रदान किया । “तुलसी के बिरवा जगाय” आपकी प्रथम छत्तीसगढ़ी गीत संग्रह है। इसके अलावा मानस मुक्ता हिंदी कविता संग्रह , “मूलिया” कहानी संग्रह,साधना के स्वर भी प्रकाशित हो चुकी है। इसके बाद काव्य संग्रह “अमृत काव्य कलश”का प्रकाशन हुआ। उन्होंने छत्तीसगढ़ी के साथ हिंदी भाषा की भी सेवा की है।उनके साहित्य और आदर्श परक विचार हमारे लिए प्रेरणादायी हैं और सदा रहेंगे।सादगी एवं ज्ञान से भरे व्यक्तित्व के धनी छत्तीसगढ़ के पावन माटी में जन्में स्व.पंडित अमृतलाल दुबे जी को उनकी जयंती पर हमारा शत शत नमन।

डॉ.मनीषा अवस्थी अध्यक्ष, (शैक्षणिक प्रकोष्ठ)विश्व हिंदी परिषद,जिला रायगढ़(छ.ग)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
<p>You cannot copy content of this page</p>