कला - साहित्य

तोड़ सभी जंजीरों को

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मुक्त गगन में जीना है तो, तोड़ सभी जंजीरों कोl
माया सागर मे डूबे हैं, कोस रहे तकदीरों कोll

मानव जीवन उलझा रहता, हरदम जिम्मेदारी मेंl
कभी खत्म नहीं होता है यह, इस जीवन की पारी मेंll
खुद ही हमनें खींच लिया है, बंँधन भरे लकीरों कोl
मुक्त गगन में जीना है तो, तोड़ सभी जंजीरों को ll

अबला बन कब तक जीना, कब तक कुंठा पालेंगे l
अत्याचारी से बचना है, जीवन भर वे सालेंगे ll
संस्कारों से बांध रखो तुम, मन के सारे पीरों को l
मुक्त गगन में जीना है तो, तोड़ सभी जंजीरों को ll

स्वर्ण पिंजरा भला लगे है, पर बंधन तो बंधन है l
घुटन कैद में अब मत जीना, पँख संँवारो कुंदन है ll
जगा चेतना धीरे -धीरे, चिंतन कहाँ फकीरों को l
मुक्त गगन में जीना है तो, तोड़ सभी जंजीरों को ll

बंधन भी तब बहुत सुहाए, नेह लिप्त जो डोरी में l
बढें शान से जीवन पथ पर, सत्संगों की टोरी में ll
नारी अंतस प्रेम स्रोत है, ढूँढ सदा उन हीरों को l
मुक्त गगन में जीना है तो, तोड़ सभी जंजीरों को ll

आशा मेहर “किरण”
रायगढ़ छत्तीसगढ़

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