कला - साहित्य
आया जेठ मास

( शंकर छंद आधारित 16/10)
भीषण गर्मी से व्याकुल है, आया जेठ मास।
पंछी सारे देख रहे हैं, कैसे बुझे प्यास ।
दाना पानी रखो सकोरे, थोड़ी रखो छांँव ।
लू की लपटें जला रही है, रखते धरा पांँव।।
कब आए आषाढ़ महीना, सब लगाएँ आस।
भीषण गर्मी से व्याकुल है आया जेठ मास।।
चूँ – चूँ करते पंछी सारे, ढ़ूँढ़े नीर बूँद।
बिन पानी के देखो कैसे, नैनन लिए मूँद।।
थोड़ा दे दो दाना पानी, आए तभी सांँस ।
भीषण गर्मी से व्याकुल है आया जेठ मास ।।
काट – काट कर जंगल सारे, मानव करे भोग।
बिना छांँव के पंछी तड़पे, आया विकट योग।।
जल जंगल को चलो बचाएँ ,करें उपाय खास ।
भीषण गर्मी से व्याकुल है, आया जेठ मास।।
आशा मेहर “किरण”
रायगढ़ छत्तीसगढ़