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परिवार एक मंदिर

मानव जीवन में संस्कारों की प्रथम पाठशाला का नाम ही परिवार है। एक आदर्श परिवार के बिना एक आदर्श जीवन का निर्माण कदापि संभव ही नहीं। परिवार ही वो मंदिर है जिसमें माता-पिता के रूप में स्वयं वो निराकार ब्रह्म, साकार रूप में विराजमान होकर रहते हैं। सच ही कहा गया है कि जिस घर में माँ-बाप हँसते हैं, उसी घर में भगवान बसते हैं।
परस्पर प्रेम, सम्मान और सहयोग की भावना के साथ-साथ कर्त्तव्यनिष्ठा से ही मकान, घर और घर, परिवार बन जाता है। वर्तमान परिदृश्य में अथवा आज की इस सदी में हम इकट्ठे होकर ना रह सकें कोई बात नहीं लेकिन कम से कम एक होकर रहना अवश्य सीखना होगा । परिवार के साथ रहें और संस्कार के साथ रहें। – – – – वी श्वेता शर्मा रायगढ ।