कला - साहित्य
(बाल साहित्य) बचपन के रंग


कागज की मैं नाव बनाऊँ।
उसको पानी में तैराऊँ।।
आना मौसी बैठ नाव में।
साथ चलूँ मैं आज गाँव में।।
कभी पहाड़ी चढ़ना सीखूँ।
कभी कहानी गढ़ना सीखूँ।।
रंगों से मैं चित्र सजाऊँ।
फूलों की बगिया महकाऊँ।।
खेतों का भी सैर करूँगा।
अपना झोला खूब भरूँगा।।
हरा मटर का स्वाद निराला।
मीठा-मीठा दाना वाला।।
हरा चना सबको है भाता।
’सुषमा’ थाली खूब सजाता।।
देख-देख मुँह पानी आता।
झटपट खाने को ललचाता।।
✍️ कवयित्री सुषमा प्रेम पटेल (रायपुर छ.ग.)