कला - साहित्य

नदी बह रही है


बह रही है
लगातार – लगातार
सतत अनवरत
अपनी मंथर गति से
समय की पुरातन नदी
उस पार
मरी पड़ी है
आस्था की बूढ़ी गाय
फटे हुए पेट के भीतर
अस्थिपंजर में फंसे हुए हैं
मांस के लोथड़े
कर रहा है
खींचने का असफल प्रयास
अपने स्वभाव के अनुसार
दुर्भिक्ष का लालची श्वान
ऊपर बहुत ऊपर
नीले आसमान में
मंडरा रहे हैं
अपने शिकार की तलाश में
अवसरवादी गिद्ध!
◆◆◆◆ बसन्त राघव
पंचवटी नगर,मकान नं. 30
कृषि फार्म रोड,बोईरदादर, रायगढ़,
छत्तीसगढ़,basantsao52@gmail.com मो.नं.8319939396

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