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ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई, कृषि क्रिया एक , फायदे अनेक : मृदा वैज्ञानिक – – के डी महंत


रायगढ़ – – भारत सरकार कृषि मंत्रालय के केन्द्रीय बारानी कृषि अनुसन्धान संस्थान,हैदराबाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् अंतर्गत जलवायु समुत्थानशील कृषि पर राष्ट्रीय पहल. (निकरा ) परियोजना, कृषि विज्ञान केंद्र, रायगढ़ में संचालित है l इस परियोजना में केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ बी एस राजपूत मुख्य अन्वेषक , केंद्र मृदा वैज्ञानिक डॉ के डी महंत सहायक अन्वेषक एवं डॉ एम के साहू वरिष्ठ अनुसंधान सहायक के रूप परियोजना को जलवायु लचीला प्रौद्योगिकी ( सीआरटी ) के माध्यम से किसानो के सलाह दे रहें है l इसी क्रम में मृदा वैज्ञानिक डॉ के डी महंत ने ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई के महत्त्व एवं आवश्यकता पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए बताया कि रबी फसलों की कटाई के उपरान्त मशीनों के उपयोग के कारण खेत असमतल हो जाते हैं । खेत खरपतवारों, कठोर सतह एवं हानिकारक कीट-व्याधियों से संक्रमित रहते है । ऐसी परिस्थितियों में इनके नियंत्रण के लिए पर्यावरण के अनुकूल, किफायती एवं प्रभावी तकनीक है “ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई” ।डॉ महंत ने बताया कि ग्रीष्मकालीन जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने पर खेत की मिट्टी ऊपर-नीचे हो जाती है इस जुताई से जो ढेले पड़ते हैं वह धीरे-धीरे हवा व बरसात के पानी से टूटते रहते हैं साथ ही जुताई से मिट्टी की सतह पर पड़ी फसल अवशेष की पत्तियां, पौंधों की जड़ें एवं खेत में उगे हुए खरपतवार आदि नीचे दब जाते हैं जो सडऩे के बाद खेत की मिट्टी में जीवाश्म व कार्बनिक खादों की मात्रा में बढ़ोतरी करते हैं जिससे भूमि की उर्वरता स्तर एवं मृदा की भौतिक दशा या भूमि की संरचना में सुधार होता है। ग्रीष्मकालीन जुताई करने से खेत के खुलने से प्रकृति की कुछ प्राकृतिक क्रियाएं भी सुचारू रूप से खेत की मिट्टी पर प्रभाव डालती है। वायु और सूर्य की किरणों का प्रकाश मिट्टी के खनिज पदार्थो को पौधों के भोजन बनाने में अधिक सहायता करते हैं। इसके अतिरिक्त खेत की मिट्टी के कणों की संरचना (बनावट) भी दानेदार हो जाती है। जिससे भूमि में वायु संचार एवं जल धारण क्षमता बढ जाती है। इस गहरी जुताई से गर्मी में तेज धूप से खेत के नीचे की सतह पर पनप रहे कीड़े-मकोड़े बीमारियों के जीवाणु खरपतवार के बीज आदि मिट्टी के ऊपर आने से खत्म हो जाते हैं साथ ही जिन स्थानों या खेतों में गेहूं व जौ की फसल में निमेटोड का प्रयोग होता है वहां पर इस रोग की गांठें जो मिट्टी के अन्दर होती है जो जुताई करने से ऊपर आकर कड़ी धूप में मर जाती है। अत: ऐसे स्थानों पर गर्मी की जुताई करना नितान्त आवश्यक होती है ।

ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई फसल अवशेषों के सड़ने, हानिकारक रसायनों के अवशेषों के क्षरण, मृदा में वायु संचार तथा मृदा की जल धारण क्षमता में वृद्धि करती है तथा मृदा क्षरण को रोकने का कार्य भी बखूबी से निभाती है । किसानो को सलाह देते हुए डॉ महंत ने कहा कि फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए रबी की फसल की कटाई के तुरन्त बाद गहरी जुताई कर ग्रीष्म ऋतु में खेत को खाली रखना बहुत ही लाभदायक रहता है, ग्रीष्मकालीन जुताई रबी मौसम की फसलें कटने के बाद शुरू होती हैं जो बरसात शुरू होने पर समाप्त होती है। अर्थात् अप्रैल से जून माह तक ग्रीष्मकालीन जुताई की जाती है। जहां तक हो सके किसान भाईयों को गर्मी की जुताई रबी की फसल कटने के तुरन्त बाद मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर देनी चाहिए क्योंकि खेत की मिट्टी में नमी संरक्षित होने के कारण बैलों व ट्रैक्टर को कम मेहनत करनी पड़ती है। ग्रीष्मकालीन जुताई करने से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थो की बढ़ोतरी होती है।मिट्टी के पलट जाने से जलवायु का प्रभाव सुचारू रूप से मिट्टी में होने वाली प्रतिक्रियाओं पर पड़ता है और वायु तथा सूर्य के प्रकाश की सहायता से मिट्टी में विद्यमान खनिज अधिक सुगमता से पौधे के भोजन में परिणित हो जाते हैं। ग्रीष्मकालीन जुताई कीट एवं रोग नियंत्रण में सहायक है। हानिकारक कीड़े तथा रोगों के रोगकारक भूमि की सतह पर आ जाते हैं और तेज धूप से नष्ट हो जाते हैं। ग्रीष्मकालीन जुताई मिट्टी में जीवाणु की सक्रियता बढ़ाती है तथा यह दलहनी फसलों के लिए अधिक उपयोगी है। ग्रीष्मकालीन जुताई खरपतवार नियंत्रण में भी सहायक है। काँस, मोथा आदि के उखड़े हुए भागों को खेत से बाहर फेंक देते हैं। अन्य खरपतवार उखड़ कर सूख जाते हैं। खरपतवारों के बीज गर्मी व धूप से नष्ट हो जाते हैं। बारानी खेती वर्षा पर निर्भर करती है अत: बारानी परिस्थितियों में वर्षा के पानी का अधिकतम संचयन करने लिए ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करना नितान्त आवश्यक है। अनुसंधानों से भी यह सिद्ध हो चुका है कि ग्रीष्मकालीन जुताई करने से 31.3 प्रतिशत बरसात का पानी खेत में समा जाता है। ग्रीष्मकालीन जुताई करने से बरसात के पानी द्वारा खेत की मिट्टी कटाव में भारी कमी होती है अर्थात् अनुसंधान के परिणामों में यह पाया गया है कि गर्मी की जुताई करने से भूमि के कटाव में 66.5 प्रतिशत तक की कमी आती है। ग्रीष्मकालीन जुताई से गोबर की खाद व अन्य कार्बनिक पदार्थ भूमि में अच्छी तरह मिल जाते हैं जिससे पोषक तत्व शीघ्र ही फसलों को उपलब्ध हो जाते है। बलुई और रेतीली भूमि में ग्रीष्मकालीन जुताई नहीं करनी चाहिए। बारानी क्षेत्रों में किसानों को गर्मी में मिट्टी पलटने वाले हल से ढलान के विपरीत दिशा में ढलान को काटते हुए जुताई करनी चाहिए। ऐसा करने से बारिश के साथ मिट्टी के बहने की संभावना कम हो जाती है। क्योंकि इस प्रकार की जुताई से बारिश का पानी मिट्टी सोख लेती है और पोषक तत्व भी बहकर खेत से बाहर नहीं जाएंगे। डॉ महंत ने बताया कि किसान भाइयों को गर्मी के मौसम मेंयह ध्यान रखना चाहिए कि मिट्टी पलटने वाले हल,कल्टीवेटर, डिस्क हैरो, एमबी प्लॉउ, प्लॉउ, सब्स्वॉयलर हल और डक फुट कल्टीवेटर के सहयोग से अपने खेत की जुताई 15 सेंटीमीटर की गहराई तक ग्रीष्मकालीन जुताई करनाचाहिए। गर्मी की जुताई हमेशा मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी करनी चाहिए जिससे खेत की मिट्टी के बड़े-बड़े ढेले बन सके, क्योंकि ये मिट्टी के ढ़ेले अधिक पानी सोखकर पानी खेत के अन्दर नीचे उतरेगा जिससे भूमि की जलधारण क्षमता में सुधार होता है।किसान भाईयों यदि आप अपने खेतों की ग्रीष्मकालीन/गर्मी की जुताई करेंगे तो निश्चित ही आपकी आने वाली खरीफ मौसम की फसलें न केवल कम पानी में हो सकेगी बल्कि बरसात कम होने पर भी फसल अच्छी हो सकेगी तथा खेत से उपज भी अच्छी मिलेगी तथा खर्चे की लागत भी कम आयेगी। जिससे कृषकों की आमदनी में बढ़ोतरी होगी। अत: उपरोक्त फायदों को मद्देनजर रखते हुए किसान भाईयों को यथा सम्भव एवं यथाशक्ति फसल उत्पादन के लिए हमेशा ग्रीष्मकालीन जुताई अवश्य करें।

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