कला - साहित्य
वीर पहने आत्मबल की, शान से बख्तर सुसज्जित

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वीर पहने आत्मबल की, शान से बख्तर सुसज्जित।
ले सबल संकल्प बढ़ते, जीत से होते न वंचित।।
हाथ पर अंगार धरकर, वीर देते हैं परीक्षा।
एक इच्छा देश हित की, कर दिए निज को समर्पित।।
देश के गद्दार दिखते, खौलता है रक्त सबका।
वीर सीमा पर डटे हैं, लक्ष्य से होते न विचलित।।
तोड़ साँकल भावना की, शत्रु को ललकारते हैं।
राह निष्कंटक गढ़ो तुम, हो न पाए देश खंडित।।
शीश झुकता है हमारा, वीर माँ के लाड़ले थे।
पद उन्हीं के आज चलकर, देशवासी है सुरक्षित।।
समांतक-जित,चित,पित,लित, डित, क्षित।
श्रीमती अरुणा साहू
C/O डाॅ.डी. पी. साहू
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