अनवसर में महाप्रभु की सेवा उपचार

27 को निकलेगी भव्य रथयात्रा
रायगढ़ – – स्नान पूर्णिमा से लेकर आषाढ अमावस्या तक भगवान श्रीजगन्नाथ अस्वस्थ होकर “अनवसर गृह ” में रहते हैं । इन दिनों में तीनों देवताओं श्रीबलभद्र, देवी सुभद्रा एवं महाप्रभु श्रीजगन्नाथ जी को पंचकर्म चिकित्सा दी जाती है। वहीं इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुए देवेश षडंगी ने बताया कि यह सेवा दिन में दो बार दी जाती है ,श्रीजगन्नाथ धाम पुरी में अभी अनसर के समय जब महाप्रभु ज्वर में तप्त होते हैं उस समय चौथे दिन भगवान को लगभग 14 किलो चंदन लकडी जो देश के सबसे उत्कृष्ट सुगंधित चंदन लकड़ी होती है एवं जो तमिलनाडू से आती है को घिसकर लगाया जाता है । चंदन घिसने वाले सेवक उस समय कोई बात नहीं करते और इस बात का ध्यान रखा जाता है कि उन चंदन लकड़ी पर नाखून न लगे ,अन्यथा वह अशुद्ध हो जाता है । पंचमी के दिन फूलारी लगाते हैं । यह फूलारी तेल शरीर के ताप को कम करने के लिए दी जाती है । इसे सूवार जाति के लोग ही बनाते हैं । यह तेल लगभग 4 किलो का बनता है ,जिसमें शुद्ध तील तेल मुख्य रहता है एवं खस की जड़,विभिन्न सुगंधित फूल जैसे जूही,जय, मोगरा, का उपयोग किया जाता है।ये सभी पदार्थ तेल सहित एक मिट्टी के पात्र में सील बंद कर जमीन के अंदर हेरा पंचमी से एक वर्ष तक रखते हैं। एक वर्ष पश्चात इससे तेल निकाल कर इसे मंदिर को भेजा जाता है ,जहां इसे देवताओं को लगाया जाता है ।इस ओसुवा नीति से बुखार उतर जाता है। इसके पश्चात सूवार लोगों द्वारा एक विशेष भोग बनाया जाता है जो कि गेंहूं का आटा ,कर्पूर, एवं चंदन का बनता है जिसे शालिसास्थिका पिंडा “स्वेदाना” कहते हैं ,देवताओ को अर्पित किया जाता है।

तत्पश्चात वैद्य द्वारा एक विशेष आयुर्वेदिक औषधी “दसमूला” तैयार की जाती है ,जिसमें कई जड़ी बूटीयां होते हैं, जैसे बेल ,खम्हार, फनफना (ओरोजाइलम इंडिकम),अगाबाथु (प्रेमनाइंटीग्रीफोलिया ),कृष्ण पर्णी (यूरेरिया पिक्टा/ लोगो पोइड्स ),शालपर्णी (डेस्मोडियम गेंगेटीकम),अन्क्रान्ती (सोलेनम जेंथोकार्पम),पातेली (स्टीरीओस्पर्मम चिनीओइड्स), लाबिंगकोली (सोलेनम इंडिकम) ।इसमें इन जड़ी बूटियों के छाल और जड़ को काटकर, कूटकर, पीसकर, इसमें शहद, घी, और कर्पूर मिलाकर, गर्म कर छोटी छोटी गोलियां बनाई जाती है ,जिसे देवताओ को दिया जाता है।