कला - साहित्य
मैं पौधा हरा- भरा”

रचनाकार स्वाति पंड्या (रायगढ़ छत्तीसगढ़)
मैं एक हरा-भरा पौधा,
धूप में पला, वर्षा में नहाया।
धरती की गोदी में पलकर,
प्रकृति का सच्चा साथी कहलाया।
नन्हीं-नन्हीं मेरी पत्तियाँ
,फूलों जैसी मुस्कान लाती हैं।
मेरे तन से शुद्ध हवा बहती,
साँसों में जीवन जगाती है।
तुम कहते हो — “पौधा प्यारा”,
पर मुझमें है जीवन का सहारा।
मैं देता हूँ छाँव घनी,
गर्मी में ठंडी – ठंडी बनी।
चिड़ियों का हूँ मैं प्यारा घर,
भौंरों की मीठी गुनगुन मैं।
मिट्टी को थामे रखता हूँ,
सूखे में बनता जीवन रथ हूँ।
अगर मुझे न अपनाओगे,
हरियाली को खो जाओगे।
सूखी धरती, गर्मी भारी —ये होगी फिर दुख की बारी।
तो आओ मिलकर प्रण ये लें,
हर आँगन में पौधा खिलें।
पेड़ लगाएँ, रक्षा करें,धरती माँ का श्रृंगार करें।
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