आध्यात्म

पर्वों  का महापर्व अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम जी का जन्म उत्सव मनाया जाता है इस दिन को आखातीज एवं अक्षय तीज भी कहा जाता है। वैशाख माह के तीज का यह दिन इतना शुभ होता है कि इस दिन किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए किसी प्रकार का मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं पड़ती इस दिन किया गया निवेश चाहे सोने में,  चांदी में बर्तन में, हमें समृद्धि की ओर ले जाता है। इस दिन को इतना शुभ माना गया है इस दिन किया गया कोई भी पुण्य कार्य दान एवं पूजा पाठ का कभी क्षय नहीं होता अर्थात उसका कभी अंत नहीं होता इस दिन हमें पापों से भी बचना चाहिए क्योंकि वह भी अक्षय हो जाते हैं। अक्षय तृतीया के शुभ दिन ही सतयुग एवं त्रेता युग का प्रारंभ हुआ था अक्षय तृतीया के दिन  प्रारंभ किया गया कोई भी शुभ कार्य बहुत ही जल्दी पूर्ण हो जाता है। अक्षय तृतीया के दिन तीन राम अर्थात श्री परशुरामजी , श्री रामजी , श्री बलवान जी की पूजा बहुत ही पुण्य दायक होती है एवं व्यक्ति को विशेष फल और पुण्य की प्राप्ति होती है। अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान शंकर जी को मटकी चढ़ाई जाती है इसके बाद नई मटके में भक्त पानी पीना शुरू करते हैं,  इस दिन जल का दान करना परम शुभ होता है। भगवान परशुराम जी ब्राह्मण के देवता बहुत ही पिता आज्ञाकारी है और इसी के कारण ही वह आज अजरअमर है पौराणिक मान्यता के अनुसार परशुराम जी ने अपने फरसे से समुद्र तक को खिसका दिया था। अक्षय तृतीया के दिन ही बद्रीनाथ एवं केदारनाथ के दरवाजे खुलते हैं एवं भक्तों को भगवान जी के दर्शन होते हैं । अक्षय तृतीया परम पुण्यमयी तिथि है अतः हमें इस दिन विशेष दान पुण्य, यज्ञ ,पूजा पाठ करना चाहिए जिससे हमारा जीवन  कल्याणमयी बन सके।गर्व से कहो हम ब्राह्मण हैं।

लेख – –

शिक्षिका एवं समाज सेविका मीरा विजय शर्मा।

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