“गोद उतराई”

कहानी समीक्षा ——————-ब्रिटेन के प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार तेजेन्द्र शर्मा की कहानी “ गोद उतराई “
हंस पत्रिका नवंबर 2024 अंक में प्रकाशित हुई है ।यह कहानी बच्चा गोद लेने और बच्चे के विकलांग निकल जाने के फलस्वरूप मानवीय त्रासदी को उकेरती कहानी है । इसकी समीक्षा मीनकेतन प्रधान द्वारा की गई है ।जो साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है ।———हंस नवंबर 2024 अंक में प्रकाशित प्रवासी कहानीकार तेजेंद्र शर्मा की कहानी ‘गोद उतराई ‘ एक बार में पढ़ गया। कहानी की यह खूबी है कि इसका कथानक पाठक को बाँधे रखता है। शुरुआत में कहानी के शीर्षक से यह बोध नहीं होता कि पारंपरिक रूप से गोद भराई का इतना विलोम अर्थ देगा यह ‘गोद उतराई’ शब्द। आज के सामाजिक जीवन में अपने भविष्य की चिंता और पुत्र -प्राप्ति की अतिरेक इच्छा से ग्रसित अमर की पत्नी अपने पति से पुत्र गोद लेने की बात करती है जिस पर अमर सहमत हो जाता है । एक पुत्री के माता-पिता होने के बावजूद वे एजेंसी से बच्चा गोद लेने का निर्णय लेते हैं। ‘गोद भराई ‘ में उनको मिलता है उजास ,जो मानसिक विकलांगता से अभिशप्त अपने जीवन को ढोते रहता है। जिसके मेडिकल रिपोर्ट पर इस दंपत्ति को संदेह है क्योंकि उनका गोद लिया यह बेटा ‘भोंदू’ निकल जाता है।इस कारण वे परेशान रहते हैं ।पाँच महीने बहुत कोशिश करने के बाद भी बच्चा बोलना तक नहीं सीखा।किंतु अमर और माला की इकलौती बेटी ऊर्जा उसे भाई के रूप में पा कर निहाल है।अब उसके जीवन का ज़रूरी हिस्सा बन गया है उजास। उसको खाना खिलाती, अपने पास देख कर खुश रहती है। उजास खाता ख़ूब है, यह ज़िक्र कर उसके शारीरिक और मानसिक असंतुलन को दिखाया गया है। कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा आरंभ में ही यह लिखते हैं – “रिपोर्ट में लेपटिन और डायबिटीज बॉर्डर लाइन पर हैं।” अमन ने गोद लिए पुत्र उजास की ब्लड रिपोर्ट को ध्यान से पढ़ते हुए अपनी पत्नी माला को सूचना दी।” रिटायर होने के बाद अमर अपनी पत्नी माला की इच्छा के मुताबिक़ बेटा गोद लेने की प्रक्रिया एजेंसी में जा कर पूरी करता है। उजास को घर ला कर परिवार के सदस्य जैसा ही रखा जाता है। दिमाग़ी रूप से कमज़ोर होने के कारण उसका इलाज भी करवाया जाता है जिससे कोई लाभ नहीं होता।इस वजह से वे क्षुब्ध रहते हैं और अन्तर्द्वन्द्व की स्थिति में अंततः बच्चे को एजेंसी में वापस कर गोद उतराई का निर्णय ले लेते हैं । एजेंसी के अधिकारी उदय शिर्के के पास जाकर पूरी समस्या बताने पर भी वह उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेता और बच्चा वापस करने की इस ‘गोद उतराई’ को पहली घटना बताता है। इस काम में उसके टालमटोल करने पर अमर और माला द्वारा अमन के वकील मित्र बाघमारे के माध्यम से हाईकोर्ट में उक्त एजेंसी के विरुद्ध धोखाधड़ी का केस दायर कर दिया जाता है। जज का फ़ैसला बच्चे के इलाज में किये गये ख़र्च की भरपाई सहित उनके पक्ष में आता है। केस जीतने की ख़ुशी में वकील अपने घर अमर और माला को बुलाता है। अमर के सामने वकील के मित्र द्वारा लंदन से भेजी गई ‘वुड्समैन ‘ व्हिस्की की एक बोतल रहती है। अमन बोतल को देखकर सोचता है -“क्या उसका दिल भी काठ का बन गया है? क्या वो भी वुड्समैन बन गया?“ कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा कहानी का अंत बहुत मार्मिक ढंग से करते हैं – “बाघमारे के गिलास में केस जीतने का आनंद भरा था और अमर के गिलास में बेटी के संभावित दुख का तनाव… पी दोनों रहे थे।” संवेदनहीनता और अमानवीयकरण के बीच कहानीकार कहीं न कहीं जीवन मूल्यों को बचाये रखने के जद्दोजहद को कथानायक के भीतर हल्के से छूता है। यह त्रासदी है आधुनिक वैश्वीकरण और उपभोक्ता संस्कृति की चपेट में अमानवीय हो रहे उच्च -मध्यवर्गीय समाज की। यह तो अमर की बात हुई।उधर उसकी पत्नी माला का मातृत्व करूणा के थपेड़ों से कैसे हिचकोलें मार रहा है देखिये -“उसके सामने उसकी बेटी ऊर्जा की दो आंखें थीं – खालीपन से भरपूर! वह सोच रही थी क्या ऊर्जा उसे इस जीवन में कभी माफ कर पाएगी?” यह पढ़ते बरबस याद आ जाती है टी.एस.इलियट की रचना “द हॉलो मेन ” अर्थात् “खोखला आदमी”। तेज़ेन्द्र जी के पास भी काठ का आदमी है अमर, जो आधुनिक युग -जीवन के यथार्थ को प्रतिबिंबित कर रहा है। एक उनका वह गोद लिया बेटा उजास है, दिमाग़ से खोखला। लेखक ने इस प्रतीकात्मक नाम का चयन बहुत बुद्धिमत्ता से किया है, जिसके गुण-धर्म में बड़ा विरोधाभास है। कथा नायिका माला भी है जो गोद उतराई के परिणामस्वरूप अपनी बेटी के दिमाग़ की रिक्तता से आशंकित हो कर लगातार रिसती चली जा रही है ,प्रेम विवाह के एक वर्ष बाद एक पुत्री को जन्म देने के बाद पाँच वर्ष तक मुंबई में इलाज कराते रहने पर भी संतानोत्पत्ति के योग्य न होने और पुत्रहीनता की कुंठित भावना से। यह सारा परिदृश्य आज के समाज का वह मनोविज्ञान है जिसे जन्मजात मानसिक रूप से विकलांग (दिव्यांग नहीं)बच्चे के अभिशप्त जीवन में देखा जा सकता है। विकलांग विमर्श और लेखन के फलक पर बाल विकलांगता को सशक्त रूप से उजागर करती इस कहानी का वैशिष्ट्य स्वयं सिद्ध है। प्रवासी कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा ने अपने आसपास घटित घटनाओं को अत्यंत सहज -सरल भाषा -शैली में इस तरह पिरोया है कि पाठक को लगता है वह सब कुछ अपने सामने देख रहा है । हाँ माला की बीमारी शारीरिक समस्या के लिए मेडिकल साइंस की यह शब्दावली पल्ले नहीं पड़ती—‘ पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम ओव्यूलेशन ’।लेखक भी कहानी में माला के जीवन को चित्रित करते हुए इस बात को मानता है ।हालाँकि इससे कथा-प्रवाह में कोई अवरोध उत्पन्न नहीं होता। बाल विकलांगता की त्रासदी,पुत्र-मोह से ग्रस्त उच्च -मध्यवर्गीय समाज की मनोवृत्ति ,सांस्कृतिक जीवन मूल्यों के आदर्शों में क्षरण,सामाजिक विकृतियाँ,बाल सुलभ निर्विकार भावनाएँ, न्यायिक व्यवस्था,महानगर में बच्चा गोद देने वाली एंजेंसी की व्यायवसायिकता,पारिवारिक संबंधों में अविश्वसनीयता ,सामाजिक कुरीतियाँ आदि को परत दर परत खोलने में क़लमकार पूरी तरह सफल है ।‘गोद उतराई’ अपनी मार्मिकता और युगीन यथार्थ को बयान करती साठेत्तरी हिंदी कहानी के लगभग साठ बरस बाद की सबसे अच्छी कहानी साबित होगी, ऐसा मेरा विश्वास है।
मीनकेतन प्रधानपूर्व प्रोफेसर एवँ विभागाध्यक्ष- हिन्दी ,प्र.प्राचार्य किरोड़ीमल शास. कला एवं विज्ञान महाविद्यालय, रायगढ़ (छत्तीसगढ़)पिन 496001पूर्व अध्यक्ष-अध्ययन मण्डल – हिन्दी ,शहीद नंदकुमार पटेल विश्वविद्यालय, रायगढ़ (भारत)ई -मेल आईडी-mkp15558rgh@gmail.comह्वाट्सएप मोबाइल नंबर-9424183086————