कला - साहित्य
मनहरण घनाक्षरी

सृजन शब्द _गर्मी
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तप रही धरा घोर,सूखा-सूखा चारों ओर,
इंद्र देव तक बात ,
यह पहुँचाइए।
लू की है लहर चली,गर्म हवा नहीं भली,
सूरज की ताप जले,
खुद को बचाइए।
जले हैं अब तो पाँव,मिले नही कहीं छाँव,
राहत मिलेगा तभी,
वृक्ष को लगाइए।
एकटक लगा ध्यान,तके सब आसमान,
सूखे खेत खलिहान,
बूंद बरसाइए ।
लीशा पटेल
रायगढ़