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सावन मास विशेष

” शिव को भाए, पावन सावन”  

ग्रीष्म ऋतु की तपिस और अकुलाहट के बाद मेघों से आबद्ध आसमान और धरती पर उमड़ती बरखा बहार जीव- जगत के लिए प्रकृति का अनुपम उपहार है।वन- उपवन में हरियाली,फूल- फल से लदी पेड- पौधों की डालियां,कोयल की कूक,नदी- तालाब और झरनों का कल-कल निनाद। ये सब नर के सोलह श्रृंगार का आभास कराता है।वास्तव में सावन मास आशाओं – इच्छाओं की पूर्ति करने वाला मास है। ग्रीष्म के थपेड़े सहती प्रकृति जिस प्रकार सावन की रिमझिम फुहारों से अपनी प्यास बुझाती हुई असीम तृप्ति का आनंद पाती है,उसी प्रकार सावन मास प्राणियों के मन के सूनेपन को दूर करता है। संपूर्ण दृश्यावली मानव मन में उमंग का संचार करने के साथ – साथ उसको प्रफुल्लित करते हुए जीवन के गीत भी सुनाती है। किसान खेती में जुट जाता है,और मनुष्य नूतन कल्पनाओं में खो जाता है।नये आयाम सृजित करने में लग जाता है।यह सब शिव कृपा से ही संभव हो पाता है। भगवान शिव प्रकृति के देवता हैं, इसलिए इसका असर प्रकृति पर भी पड़ता है। ध्यान – साधना में उनका यही रूप निखरकर सामने आता है। जिसमें साधक उन्हें हर- हर महादेव,सिर पे चंद्रमा,जटा में गंगधार,गले में सर्प माल,तन पे मृगछाल,नासिक श्वेत धवल भभूत धारण किए,नंदी की सवारी, चारों ओर प्रेत पिशाच गणादि के साथ पाता है।तभी तो समसत सृष्टि में भोलेशंकर त्रिपुरारी की जय-जयकार गूंजायमान होती है।दूर- दराज से कांवड़िए जलाभिषेक करने शिवालय आये हैं। भक्तों की लंबी कतार लगी होती है। धार्मिक आस्था लिए हुए बम- बम भोले का जयकारा लगाते हैं।बेलपत्र,धतूरा, गंगाजल,भांग,घी,दूध,दही शहद अर्पित करते हैं।भक्त उन्हें देवों के देव अधिपति महादेव कहते हैं।              

देवाधिदेव महादेव शिव ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जो जागृत अवस्था में रहते हैं। इससे भक्ति और मनोकामना पूर्ति का अनूठा संयोग बनता है। भोलेशंकर, त्रिकालदर्शी हैं, योगेश्वर त्रिलोक के स्वामी हैं,मानव जाति की अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति करते हैं।सावन मास की उत्पति श्रवण नक्षत्र से हुई है।इसका स्वामी चंद्र को माना जाता है।जो शिव के मस्तक पर विराजमान हैं इसलिए शिव को शशिधर भी कहा जाता है।श्रवण नक्षत्र जल का कारक माना गया है,इस नाते भी भगवान शिव को सावन मास मनभावन अति प्रिय है।                 

इस माह में प्रकृति भी वातावरण की शांत करने के लिए जलाभिषेक करती है। अलग-अलग तीर्थों में विभिन्न जल का महत्व होने के कारण शिव जी की प्रसन्नता के लिए कांवड़ यात्राओं का प्रचलन बढ़ गया है। महादेव को औघढदानी भी कहा जाता है।मात्र एक लोटा जल से और बेलपत्र से ही प्रसन्न होने वाले देवता हैं।भक्ति की मनोरथ पूरी करते हैं। अंत में यह कहना उचित होगा कि सावन मास भगवान शिव को प्रिय है।सावन में देवाधिदेव महादेव का अभिषेक कर पुण्य प्राप्ति होती है।                                      

डॉ. मनीषा त्रिपाठी  प्रधानपाठक

शासकीय रविशंकर प्राथमिक शाला चांदमारी, रायगढ़ ( छत्तीसगढ़* )   राज्यपाल पुरस्कार से सम्मानित

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